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सोमवार, 10 सितंबर 2007

नौकरशाही की उदासीनता का नया नमूना: अमिताभ पाण्डेय

क्या किसी गाँव में शिक्षकों के रिक्त पद भरे जाने की मांग करना अपनाध है ? आवेदन, निवेदन, ज्ञापन के जरिये अपनी मांग प्रशासन के जिम्मेदार अफसरों तक पहुंचाने के बाद 15 दिनों तक समाधान का इंतजार करना पर्याप्त नहीं है? समाधान न होने के दिशा में पूर्व घोषणा के अनुसार पूर्व निर्धारित तिथि को अनोखे तरीके से ग्रामवासियों द्वारा विरोध प्रदर्शन कर अपनी मांग की पूर्ति के लिए प्रशासन का ध्यान आकृष्ट करना जुर्म है ?
ये वे महत्वपूर्ण सवाल हैं जो इन दिनों मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले से राजधानी भोपाल तक शिक्षा के गलियारों में गूंज रहे हैं। झाबुआ जिले के पेटलावद विकासखण्ड के कालीघाटी गाँव के स्कूल में पर्याप्त शिक्षकों की मांग करने वाले ग्रामवासियों, कुछ समाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा शैक्षणिक व्यवस्था को लेकर विरोध प्रदर्शन का जो तरीका अपनाया गया है उससे प्रशासन की नाराजगी बढ़ गई है। हालात ऐसे बन गये हैं कि रिक्त पड़े शिक्षकों के पदों की कालीघाटी के स्कूल में पूर्ति करने से ज्यादा चिंता प्रशासन उन सामाजिक कार्यकर्ताओं, ग्रामवासियों की कर रहा है जिन्होंने विरोध प्रदर्शन किया है। शिक्षकों को पर्याप्त संख्या में पदस्थ करने पर ध्यान देने से अधिक तेजी से ध्यान विरोध प्रदर्शन करने वालों पर कानूनी कार्यवाही करने में दिया जा रहा है।
दरअसल उपरोक्त सवालों के जवाब तलाश करने से पहले उस घटना पर भी गौर करना जरूरी है जिसके कारण ये सवाल चर्चा में आएं। हुआयों कि ग्राम कालीघाटी के प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल में गत कुछ वर्षो से पर्याप्त संख्या में शिक्षकों का अभाव है। आलम यह है कि प्राथमिक स्कूलों में 85 बच्चों पर 1 शिक्षक और माध्यमिक स्कूल के सभी बच्चों के लिए केवल 2 शिक्षक पदस्थ किये गये। शिक्षकों की कमी के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई पर हो रहे विपरीत असर की चिंता बच्चों के अभिभावकों को भी हुई। पालक शिक्षक संघ के पदाधिकारियों एवं गाँववालों ने इस पर विचार करने के लिए विगत 15 अगस्त 2007 को बैठक बुलाई जिसमें पंचायत के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। इस बैठक में सर्व सम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया गया कि प्रशासन को ज्ञापन देकर शिक्षक के सभी पद भरे जाने की मांग की जाये। ज्ञापन में यह भी उल्लेख था कि यदि 15 दिवस में उल्लेखनीय कार्यवाहीं नहीं हुइ तो कालीघाटी के स्कूलों में आसपास के जिन गाँवों के बच्चे पढ़ते है उनके अभिभावन भी कालीघाटी के गांववालों के साथ 30 अगस्त को विरोध प्रदर्शन करेगें। विरोध प्रदर्शन की घोषणा में यह साफ उल्लेख था कि शिक्षकों की पर्याप्त संख्या में नियुक्ति न होने पर गाँव के लोग कालीघाटी पंचायत के स्कूलों में ताला लगाकर विरोध प्रदर्शन करेगें। ऐसा हुआ भी अपनी मांग के प्रति अफसरों के उदासीन रवैये के कारण कालीघाटी गांव के लोगों ने 30 अगस्त को गांव के प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों मे ताला डाल दिया। ग्रामीणजनों ने जिनकी संख्या 600 से भी अधिक भी स्कूलों का ताला लगाकर एक सभा की। सभा में ग्रामीणजनों ने प्रशासन, अधिकारियों के उदासीन रवैये के प्रति नाराजगी जाहिर की। उन्होंने स्कूलों में तालाबंदी करने के बाद वहाँ पढ़ने पहुंचे 25 से ज्यादा बच्चों को एक देवस्थान के पास बड़े पेड़ पर चढ़ा दिया। बच्चे अपनी कापी किताब लेकर पेड़ की डालियों पर जा बैठके जिनमें कुछ बालिकाएं भी शामिल थी। इन बच्चों को पेड़ पर पढ़ाने का काम गांव के ही एक नौजवान ने लगभग दो घंटे तक किया। स्कूलों में तालाबंदी करके पेड़ पर स्कूल लगाने के पीछे उद्देश्य यह था कि अफसरों का ध्यान शिक्षकों की कमी की तरफ खींचा जाये।
इसी बीच जब पेड़ पर स्कूल लगाये जाने का समाचार चर्चा में आया तो प्रशासन ने 1 सितंबर को पास के ही एक गांव में पढ़ा रहे शिक्षकों में से दो शिक्षकों को कालीघाटी भेज दिया जबकि जरूरत ज्यादा शिक्षकों की थी। इस नई व्यवस्था से कालीघाटी के स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हो पाये तथा जिस गांव के 2 शिक्षकों को कालीघाटी भेजा गया था वहां के स्कूलों का हाल भी बिगड़ गया। कुल जमा बात यह कि एक स्कूल की व्यवस्था ठीक करने के लिए दूसरे स्कूल की व्यवस्था को भी प्रभावित किया गया। अब हाल यह है कि न तो कालीघाटी गांव में पर्याप्त शिक्षक है और न ही आसपास के अन्य गाँव के स्कूलों शिक्षक निर्धारित संख्या में है। पेटलावद ब्लॉक के ही कास्याखाली नामक गाँव में 46 बच्चों को एक शिक्षक के भरोसे छोड़ दिया गया है जबकि झकनावदा के समीप बिथड़ी नामक गाँव में तो 300 बच्चों को पढ़ाने का काम केवल एक ही शिक्षक द्वारा कराये जाने की जानकारी मिली हैं। इस स्थिती में बच्चें क्या पढ़ रहे होगें इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। पेटलावद विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी भी स्वीकार करते है कि इस क्षेत्र में लगभग 234 शिक्षकों की कमी है फिर भी स्कूल जैसे तैसे चल रहे है।
शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए कालीघाटी गांव के ग्रामीणों ने जो विरोध प्रदर्शन किया उससे अधिकारी इतने नाराज है कि कुछ प्रदर्शनकारियों पर कानूनी कार्यवाहीं किये जाने के संकेत मिले है। अधिकारी जितनी सक्रियता प्रदर्शनकारियों पर कार्यवाहीं करने में दिखा रहे है इतनी यदि उस समय ही दिखा देते जब कालीघाटी के लोगों ने अपनी मांगों के लिए ज्ञापन दिया था तब शायद विरोध प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं होती। ग्रामीणजनों का ज्ञापन नौकरशाही की उदासीनता से 15 दिनों तक ठण्डे बस्ते में पड़ा रहा। इसके बाद भी उदासीनता के लिए दोषी अधिकारी पर कोई कार्यवाहीं हो सकेगी यह कहना मुश्किल है। अधिकारी अपनी उदासीनता के कारण्ा पैदा हुए विरोध प्रदर्शन के लिए गांववालों को ही जिम्मेदार ठहराये तो भला बताईये यह कौन सा न्याय है ? यदि मांग करने पर भी अधिकारी जनता से जुड़ी समस्याओं पर त्वरित कार्यवाहीं करने को तैयार न हो और विरोध प्रदर्शन करने पर गांववालों पर ही कानूनी कार्यवाही करने की तैयारी करे तो ऐसे में गांव का, बच्चों का, शिक्षा का विकास कैसे संभव होगा इसका अंदाज लगाना मुश्किल नहीं है।
अमिताभ पाण्डेय, स्वतंत्र पत्रकार, जी 10/3 साउथ टी.टी. नगर, सरदार पटेल स्कूल के सामने, भोपाल. मोबाईल : 9424466269