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सोमवार, 10 सितंबर 2007

आदिवासी इलाकों में शिक्षा के इंतजाम : अमिताभ पाण्डेय

आदिवासियों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा जो कल्याणकारी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं उनकी सच्चाई जानना है तो मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद विकासखण्ड में कुछ गांवों का दौरा कर लीजिए। इन गांवों में कहीं स्कूल नहीं है जहां स्कूल है वहां पर्याप्त संख्या में शिक्षक नहीं है। शिक्षकों की कमी दूर करने की फिक्र अधिकारियों को नहीं है। शायद यहीं कारण है कि अपने बच्चों को शिक्षित करने की चिंता करने वाले आदिवासी अनोखे विरोध प्रदश्रन कर अफसरों का ध्यान शिक्षकों की कमी की ओर खींच रहे है।

आदिवासी इलाकों में शिक्षा के इंतजाम सुधारने के लिए ऐसे कुछ विरोध प्रदर्शन पिछले दिनों झाबुआ जिले के पेटलावद विकासखण्ड में देखे गये। गत 30 अगस्त को ग्राम कालीघाटी में शिक्षकों की कमी से त्रस्त गांव वालों ने पूर्व घोषणा के अनुसार स्कूलों में तालाबंदी की और बच्चों को एक पेड़ पर बिठाकर गांव के ही एक युवक ने दो घंटे तक पढ़ाया। पेड़ पर स्कूल लगाने के पीछे गांव वालों की मंशा सरकार का ध्यान शिक्षकों की कमी की ओर आकर्षित करने की थी। इसके लिए 15 अगस्त को कालीघाटी के ग्रामवासी प्रशासन को ज्ञापन भी दे चुके थे कि यदि 30 अगस्त तक गांव के प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की गई तो स्कूलों में ताला लगाकर प्रदर्शन किया जायेगा। ज्ञापन के माध्यम से अपनी मांग ऊपर पहुँचाने के बाद भी निर्धारित अवधि में शिक्षकों के रिक्त पद नहीं भरे गये तो ग्रामवासियों को स्कूल में ताला लगाने पर मजबूर होना पड़ा। जानकारी मिली है कि विरोध प्रदर्शन के बाद भी कालीघाटी में पर्याप्त शिक्षकों को पदस्थ नहीं किया जा सका है तथा स्कूलों में तालाबंदी कर पेड़ पर स्कूल लगाने में सहयोगी कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं, गांववालों के विरूध्द कार्यवाहीं की जा रही है। माना जा सकता है कि अधिकारियों को शिक्षकों के पद भरने से ज्यादा चिंता विरोध प्रदर्शन करने वालों को सबक सिखाने की है।

आदिवासी इलाकों में शिक्षा के इंतजाम का हाल बताने वाली दूसरी दिलचस्प घटना भी पेटलावद विकासखण्ड की ही है। यह घटना भी यह दिखाने के लिए काफी हैं कि है कि आदिवासी इलाकों में शिक्षा के इंतजाम क्या हैं ? पता चला है कि पेटलावद विकासखण्ड अंतर्गत ''माता फलिए'' नामक गांव में शिक्षकों की कमी से जूझ रहे गाँववालों ने शिक्षक दिवस पर मिट्टी के गुरूजी बनाकर उनकी पूजा की। इस पूजा के माध्यम से गाँववाले शिक्षकों की कमी की ओर प्रशासन का ध्यान आकर्षित करना चाहते है। बताया जाता है कि माता फलिए के प्राथमिक स्कूल में केवल एक शिक्षक है जो कि लगभग 100 बच्चों को पढ़ा रहा हैं। बार-बार शिक्षकों की मांग करने के बाद भी माता फलिए में पर्याप्त संख्या में शिक्षकों को पदस्थ नहीं किया जा सका है। शिक्षा के इंतजामों की बदहाली का आलम यह है कि माता फलिये के आसपास लगभग दो किलोमीटर तक मिंडिल स्कूल नहीं है। गाँव से दूर पोखा नामक जगह पर जो मिडिल स्कूल है वहाँ पहुँचने के लिए बच्चों को रास्ते के नदी नाले पार करना पड़ता है जो कि बारिश में खतरनाक हो सकता है। शायद यही कारण है कि माता फलिए के आसपास रहने वाले आदिवासी अपने बच्चों को मिडिल स्कूल में भेजना नहीं चाहते है। प्राथमिक शिक्षा के बाद ही अधिकांश बच्चों की पढ़ाई बंद हो जाती है। ग्राम पंचायत पोखा के सरपंच हुरसिंह बारिया की बात पर यकीन करें तो पोखा ग्राम पंचायत के पाँव फलियों के लिए स्कूल खोलने का प्रस्ताव लगभग दो माह पूव विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी को भेजा गया था जिस पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई।

पेटलावद विकासखण्ड में शिक्षा की व्यवस्था (?)के कुछ और भी उदाहरण देखे जा सकते हैं। मिसाल के तौर पर ग्राम कास्याखाली की प्राथमिक शाला में 46 बच्चों को एक शिक्षक पढ़ाते है तो ग्राम गरवाड़ी में 42 बच्चों के लिए एक ही शिक्षक है। ग्राम बिथड़ी में तो 200 से ज्यादा बच्चों को केवल एक शिक्षक के भरोसे छोड़ दिया गया है। इन प्राथमिक स्कूलों में पदस्थ एकमात्र शिक्षक मध्यान्ह भोजन सहित अन्य गैर शैक्षणिक कार्यो को करने के बाद बच्चों को पढ़ाने के लिए कितना समय निकाल पाता होगा इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है। पेटलावद के विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी भी स्कूलों में शिक्षकों की कमी को स्वीकार करते हैं लेकिन रिक्त पदों पर पर्याप्त शिक्षक कब तक पदस्थ हो जायेगें इस सवाल का जवाद देने को कोई तैयार नहीं है। परिणाम यह है कि गांवालों को शिक्षक के पद भरने की मांग करते हुए नये नये ढंग से विरोध प्रदर्शन कर सरकार का ध्यान आकर्षित करना पड़ रहा है। मजे की बात यह है कि इस सबके बावजूद शिक्षकों की कमी की समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पा रहा लेकिन आदिवासी इलाकों में शिक्षा के बेहतर इंतजाम वाले दावे किये जा रहे है। सरकारी दावे और मैदानी सच्चाई के बीच का अंतर कब खत्म होग कहना मुश्किल है।
अमिताभ पाण्डेय, स्वतंत्र पत्रकार, जी 10/3 साउथ टी.टी. नगर, सरदार पटेल स्कूल के सामने, भोपाल. मोबाईल : 9424466269